भेड़चाल में न करें चारधाम यात्रा,प्रदेश के अनेक सिद्वपीठ व पर्यटक स्थल है आपके इंतजार में।

 

भानु प्रकाश नेगी, पत्रकार व समाजसेवी (चमोली उत्तराखंड)
-चारधाम के अलावा देवभूमि उत्तराखंड में है सैकड़ों सिद्धपीठ व पर्यटक स्थल।
-सीधे चारधाम यात्रा के बजाय अनेक प्रसिद्व मंदिर व पर्यटक स्थल कर रहे है सैलानियों का इंतजार।
-सैलानियां को रखना होगा सफाई का विशेष ख्याल।
-उत्तराखंड पंहुचने वाले सैलानियों से ग्रीन टैक्स लेने की है आवश्यकता।
उत्तराखंड में प्रसिद्ध चारधाम यात्रा का आगाज हो चुका है चारो धामों में अभी तक 10 लाख से अधिक श्ऱद्धालु दर्शन कर चुके है। एक साथ भारी संख्या में तीर्थयात्रियों के उत्तराखंड के चारों धामों में पंहुचने से व्यवस्था बनाने में शासन व प्रसाशन को भी खासी परेसानियों का सामना करना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेसानियों केदारनाथ धाम दर्शन के लिए पंहुचने वाले तीर्थयात्रियों को हो रही है। विकट भूगोल व विषम परिस्थतियों के कारण केदारनाथ जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्र में अत्याधिक मानवों की आवाजाही पर्यावरणीय दृष्टि से भी नुकसान दायक है। हॉलाकि शासन व प्रसाशन यात्रियों की सुख सुविधाओं को सुचारू करने का प्रयास कर रहा है लेकिन अधिक संख्या में यात्रियों के उमड़ने से कई तीर्थ यात्रियों को समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है।
उत्तराखंड आने वाले तीर्थयात्रियों व पर्यटकों का निश्चित रूप स्वागत किया जाना चाहिए। सिर्फ भेड़चाल में चारधाम यात्रा के बजाय अन्य तीर्थस्थलों व पर्यटक स्थलों का भी आनन्द लेना चाहिए। क्योंकि देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखंड में सिर्फ चारधाम ही नहीं है बल्कि अनेक देवी देवताओं के सिद्धपीठ विश्वविख्यात पर्यटक स्थल भी मौजूद है। केदारनाथ यात्रा पर जाने वाले यात्रियों को सीधे केदारनाथ धाम जाने के बजाय मॉ धारी देवी मंदिर,रूद्रप्रयाग में प्रचीन शिव मंदिर,अगस्यमुनी मंे अगस्यमुनि महाराज के पौराणिक मंदिर के अलावा उखीमठ में प्रसिद्व ओंकारेश्वर मंदिर, अष्ट भैरव मंदिर कालीमठ,मध्यमेश्वर महादेव मंदिर,गुप्तकाशी के प्राचीन शिव मंदिर,नारायणकोटी में प्राचीन नायायण मंदिर,त्रियुगीनारायण मंदिर,गौरीकुण्ड मंदिर के दर्शन करने चाहिए।
बद्रीनाथ धाम जाने से पूर्व तृतीय केदार बाबा तुंगनाथ,चन्द्रशिला,मंण्डल घाटी स्थित सिद्धपीठ मांॅ ज्वाला देवी मंदिर,माता अनसूया मंदिर,अत्रिमुनि आश्रम,रूद्रनाथ मंदिर,पनार बुग्याल, डूमूक गांव स्थित राजा बजीर देवता मंदिर, गोपेश्वर स्थित भगवान शिव के प्राचीन गोपीनाथ मंदिर,कुजांउ मैकोट स्थित गणजेश्वर महादेव मंदिर,जखनार त्रिदेव मंदिर, विमरू लाटू देवता मंदिर, जोशीमठ स्थित प्रसिद्व नृसिंग मंदिर पांण्डुकेशर स्थित प्रसिद्व भविष्य बद्रीमंदिर,भूमियाल घंटाकरण मंदिर के बाद भगवान बद्रीविशाल के दर्शन और माणा गांव स्थित घंटाकरण देवता मंदिर सरस्वती नदी,व्यास गुफा,भीम पुल सतोपंत,कल्पेश्वर महादेव मंदिर के अलावा वापसी में फूलों की घाटी,हेमकुंड साहिब, लंगासू स्थित मां चण्डिका मंदिर,कर्णप्रयाग स्थित उमादेवी मंदिर,किमोली गांव स्थित प्रसिद्व लक्ष्मी नारायण मंदिर,नंदा देवी मंदिर,चांदपूर गढ़ी,कूरूड स्थित काली माता,नौटी स्थित मॉ नंदादेवी मंदिर,वेदनी बुग्याल,रूपकुण्ड,नागनाथ पोखरी स्थित प्रसिद्व नागनाथ स्वामी मंदिर,नागनाथ गढ़ी स्थित मॉ राजराजेश्वरी मंदिर, बामेश्वर महादेव मंदिर,घुड़साल स्थित प्रसिद्व राजराजेश्वरी माता मंदिर, क्रौच पर्वत स्थित प्रसिद्व कार्तिक स्वामी मंदिर, दुर्गामाता मंदिर,फलासी स्थित प्राचीन तुंगनाथ मंदिर,माता हरियाली देवी मंदिर समेंत सैकड़ों प्रसिद्व देवी देवताओं के मंदिरों में दर्शन कर सकते है।
इसी प्रकार से गंगोत्री व यमनोत्री धाम की यात्रा पर जाने वाले तीर्थ यात्री व पर्यटक,देहरादून, स्थित भगवान टपकेश्वर महादेव मंदिर,लक्ष्मण सिद्ध,कालूसिद्व,मानकसिद्ध मंदिर,एफआरआई,सहस्रधारा,संतलादेवी मंदिर,बुद्वा टेम्पल,लच्छीवाला,कुंजापुरी,चन्द्रबनी,उत्तरकाशी स्थित प्रसिद्ध बाबा काशी नाथ मंदिर,हर्षिल,हरकी दून,दायरा बुग्याल,जखोल स्थित सोमश्वर महादेव मंदिर,हनोल स्थित प्रसिद्व,महासू देवता मंदिर, आदि अनेक प्रसिद्व देवी देवताओं व पर्यटक स्थलों पर दर्शनों व घूमने के लिए जा सकते है।

 

 


चारो धार्मिक व पर्यटक स्थलों में जाने से जहां सभी यात्रियों की यात्रा सुगम व सरल होगी वही उन्हें नये नये स्थानों को देखने का आनन्द भी प्राप्त होगा। क्योंकि उत्तराखंड के चारों धाम उच्च हिमालय क्षेत्रांे मे स्थित है और पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील है इसलिए भी यहां एक साथ मानवों की आवाजाही खतरनाक हो सकती है। उत्तराखंड आने वाले तीर्थ यात्रियों व पर्यटकों को भेड़चाल में चारधाम यात्रा नहीं करना चाहिए। बल्कि चारधाम यात्रा के साथ साथ इन प्रसिद्व सिद्वपीठों व पर्यटक स्थलों का भी आनन्द लेना चाहिए साथ ही इस बात का उत्तराखंड के शासन व प्रसाशन को खास ख्याल रखना होगा कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध व लगाना अति आवश्यक है। ताकि पर्यावरणीय प्रदूषण के अलाव यहां की दुलर्भ हिमलयी जड़ी बूटियांे,जैव विविधताओं व दुर्लभ वन्यजीवों को सुरक्षित रखा जा सके।