श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल एण्ड हैल्थ साइंसेज में इथिक्स एवम् गुड क्लीनिकल एवम् लैब प्रैक्टिस पर कार्यशाला
कार्यशाला में मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट, डीएम व एमसीएच कोर्स कर रहे 100 से अधिक छात्र-छात्राओं ने किया प्रतिभाग
देहरादून। श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हेल्थ साइंसेज में इथिक्स एवम् गुड क्लीनिकल एवम् लैब प्रैक्टिस विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में एसजीआरआर मेडिकल काॅलेज के मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट, डीएम व एमसीएच कोर्स कर रहे 100 से अधिक छात्र-छात्राओं ने सक्रिय सहभागिता की।
बुधवार को श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एण्ड हेल्थ साइंसेज के ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यशाला का शुभारंभ डॉ. अशोक नायक, प्राचार्य, तथा डॉ. मनोज गुप्ता, निदेशक, श्री गुरु राम राय इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड हेल्थ साइंसेज द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। कार्यशाला के दौरान एफएमटी विभागाध्यक्ष डॉ. ललित कुमार वाष्र्णेय ने “मेडिकल सेवा में नैतिक दायित्व और डॉक्टरों की भूमिका” विषय पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने डॉक्टरों के पेशेवर आचरण, मरीजों के प्रति दायित्व, और मेडिकल काउंसिल के दिशा-निर्देशों का गंभीरता से पालन करने की आवश्यकता पर बल दिया। कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा नैदानिक प्रयोगशालाओं की गुणवत्ता, रिपोर्टिंग में पारदर्शिता, सैंपल हैंडलिंग की शुद्धता एवं पेशेंट डाटा की गोपनीयता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तृत जानकारी दी गई। इस अवसर पर छात्र-छात्राओं को चिकित्सा के क्षेत्र में नैतिकता की महत्ता एवं आधुनिक प्रयोगशाला प्रक्रियाओं की बारीकियों से परिचित कराया गया, जिससे भविष्य में वे उच्च गुणवत्ता की सेवा प्रदान कर सकें।
कार्यशाला के अंत में प्रतिभागियों के प्रश्नों का समाधान भी विशेषज्ञों द्वारा किया गया, जिससे छात्र-छात्राओं को व्यावहारिक ज्ञान का लाभ मिला। फार्माकोलॉजी विभाग की डॉ. शालू बावा ने नेशनल मेडिकल कमिशन द्वारा प्रेस्क्रिप्शन से संबंधित जारी गाइडलाइंस की जानकारी दी और कहा कि डॉक्टर का हस्तलिखित पर्चा स्पष्ट व पठनीय होना आवश्यक है, जिससे मरीज व कैमिस्ट दोनों को भ्रम की स्थिति न हो। उन्होंने कहा कि दवाओं के जैनरिक नाम प्रेस्क्रिप्शन में लिखा जाना उचित रहता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि एलोपैथिक डॉक्टर को अपने पर्चे में केवल एलोपैथिक दवाएं ही लिखनी चाहिए, अन्य किसी पद्धति की दवाओं की सलाह देना कानूनी रूप से गलत है। कार्यशाला में नैदानिक प्रयोगशाला संचालन, रिपोर्टिंग में पारदर्शिता, मरीज की जानकारी की गोपनीयता और पेशेवर आचरण जैसे विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा गहन चर्चा की गई। इस शिक्षाप्रद कार्यशाला ने विद्यार्थियों को चिकित्सा के नैतिक व तकनीकी पक्षों की व्यावहारिक समझ प्रदान की, जो उनके भावी चिकित्सा जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
रिष्ठ फिजीशियन प्रो. डॉ. नरदीप नैथानी ने “अच्छा नैदानिक अभ्यास एवं चिकित्सक-मरीज संबंध” विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि मरीज तभी खुलकर अपनी समस्या साझा करता है जब उसे विश्वास हो कि डॉक्टर उसकी बातों को पूरी गंभीरता और संयम के साथ सुनेंगे। डाॅ प्रतिभा सिंह ने कोड आॅफ मेडिकल इथिक्स 2002 एवं 2023 के महत्वपूर्ण बिंदुओं की विस्तृत जानकारी दी और डॉक्टर-मरीज के बीच संवाद, गोपनीयता और पारदर्शिता पर विशेष बल दिया।
डॉ. सुमन बाला ने मरीजों के मानवाधिकारों पर व्याख्यान दिया डॉ. हरिओम खंडेलवाल ने भारत में इच्छा मृत्यु के कानूनी व चिकित्सा पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला, डॉ. राजेश साहू ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन के संदर्भ में मरीज की सहमति व पेशेवर गोपनीयता पर वक्तव्य दिया। इसके अतिरिक्त, डॉ. बिंदु अग्रवाल, डॉ. नम्रता सक्सेना, डॉ. सुमित मेहता, डॉ. नारायण जीत सिंह, डॉ. अर्पणा भारद्वाज, डॉ. एवी माथुर, डॉ. पुनीत ओहरी एवं डॉ. शाह आलम ने नैतिकता, मरीज अधिकार, डॉक्यूमेंटेशन और नैदानिक प्रक्रियाओं से जुड़े विभिन्न विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुत किए। मंच संचालन डा मेघा लूथरा द्वारा किया गया। कार्यशाला के सफल संचालन में डॉ. ललित कुमार वाष्र्णेय, डॉ. पुनीत ओहरी एवं डॉ. अंजलि चैधरी ने आयोजन समिति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कार्यशाला मेडिकल छात्र-छात्राओं को नैतिक और व्यावसायिक मूल्यों से सुसज्जित कर उन्हें भविष्य में उत्कृष्ट चिकित्सक बनने की दिशा में प्रेरित करने वाली सिद्ध हुई।